भृगु ज्योतिष से जानिए अपनी किस्मत और भविष्य के राज

 

भृगु पद्धति को  हिन्दू ज्योतिष की सबसे रहस्मय और कठिन शाखा माना जाता है। पाराशरी, जैमिनी और ताज‌िक पद्धतियों की भांति भृगु की शिक्षा प्राप्त नहीं की जा सकती। भृगु पद्धति तर्कसंगत न होकर दैवीय शक्ति में विश्वास और साधना के बल पर आधारित है। इस कारण से भृगु का ज्ञान हमेशा कुछ परिवारों तक ही सीमित रहा है। पंजाब के होशियारपुर, उत्तर प्रदेश में मेरठ, वाराणसी और प्रतापगढ़, मध्यप्रदेश के सागर, उड़ीसा के गंजम और राजस्थान के करोई में भृगु पद्धति से भविष्यवाणी करने वाले कई ज्योतिषियों के परिवार हैं। इसके अतिरिक्त पुणे, दरभंगा (बिहार), कुरुक्षेत्र और बेंगलुरु में भृगु संहिता की दुर्लभ प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपियां संरक्षित हैं। कुछ वर्ष पूर्व में मुम्बई, अहमदाबाद, पटना और कोलकाता में भी भृगु शास्त्रियों के परिवार थे किन्तु अब वहां इस परंपरा से भविष्यवाणी करने वाले कम ही ज्योतिषी रह गए हैं।


भृगु पद्धति में मुख्य रूप से तीन प्रकार से जातक को भविष्यफल दिया जाता है, पहला जातक के नाम और जन्मकुंडली के ग्रहों की ‌स्‍थ‌ित‌ि के आधार पर उसका भृगु-पत्र निकाल कर फल कथन, दूसरा जातक के प्रश्न पूछने पर उसको एक अंक तालिका में से एक अंक का चयन करने को कहना और फिर उसके आधार पर भविष्यवाणी करना और तीसरा जातक के हाथ की रेखाओं और जन्म कुंडली के ग्रहों की स्‍थ‌ित‌ि की गणना के आधार पर भृगु-पत्र निकाल कर भविष्वाणी करना। उपरोक्त तीनों पद्धतियों में से पहली दो का अभ्यास अधिकतर भृगु शास्त्री करते देखे गए हैं। किन्तु तीसरी पद्धति का अभ्यास बेहद कम भृगु ज्योतिषियों ने किया है। वर्तमान में राजस्थान के करोई जिले के पंडित नाथूलाल व्यास भृगु की इस विलक्षण पद्धति का अभ्यास पिछले 50 वर्षो से कर रहे हैं।



पंडित नाथूलाल व्यास को राष्ट्रीय मीडिया द्वारा प्रसिद्धि वर्ष 2007 में मिली जब उनकी एक भविष्वाणी के अनुसार प्रतिभादेवी पाटिल राष्ट्रपति बनी। यह भविष्यवाणी उन्होंने श्रीमती प्रतिभावदेवी पाटिल को उनके राष्ट्रपति पद के नामांकन भरने से 6 माह पूर्व दी थी जब कोई दूर-दूर तक उनके इस पद तक पहुचने के कयास भी नहीं लगा सका था। कुछ इसी प्रकार से पंडित नाथू लाल जी ने एक भविष्यवाणी स्मृति ईरानी को मंत्री बनने के संबंध में दी थी जिसके सत्य होने पर वह स्वयं उनका धन्यवाद करने करोई आयी थी। पंडित नाथू लाल जी के अनुसार भृगु पद्धति का ज्ञान उनको  वाराणसी के ज्योतिषी स्वर्गीय बख्तावर जी से हुआ था। पंडित नाथू लाल जी 25 वर्ष की आयु में अपना घर छोड़कर इस पद्धति को सीखने वाराणसी गए थे और वहाँ से यह ग्रन्थ प्राप्त कर लगभग 36 वर्ष की आयु में अपने गांव करोई में वापिस आकर तब से अब तक हजारों जिज्ञासुओं की भविष्यवाणियां कर चुके हैं।

                                  

85 वर्ष के आयु पर कर चुके पंडित नाथू लाल जी के साथ  राजस्थान के करोई जिले में और भी कुछ भृगुशास्त्री हैं। पंडित नाथूलाल जी भृगु का सम्पूर्ण फल कथन और प्रश्न दोनों पद्धतियों का इस्तेमाल करते हैं। वह जातक के हाथ और कुंडली देखकर उसकी ग्रह स्‍थ‌ित‌ि के आधार पर कुछ अंकों को अपनी स्लेट पर लिख लेते हैं। बाद में जातक को भृगु के एक विशेष पत्र पर किसी एक चिन्ह पर हाथ रखने को कहते हैं। जातक के इस चिन्ह विशेष को उंगली से छूने के बाद वह वहां अंकित अंकों का अपने द्वारा ग्रह-गणना से निकले गए अंक से मिलान करते हैं। अंक मिल जाने पर उस अंक विशेष के आधार पर एक 'भृगु-पत्र' निकाल कर जातक का फल कथन किया जाता है। इस भृगु फल कथन में अधिकतर संस्कृत के 27 श्लोक होते हैं जिसमे जातक के भाई-बहनों के सुख-दुःख, माता-पिता और घर की स्‍थ‌ित‌ि, शिक्षा, विवाह, संतान, व्यवसाय आदि का सामान्य फल कथन होता है।




अन्य भृगुशास्त्रियों की भांति एक ही बार में फल-कथन न कहकर नाथूलाल जी जातक को 4 माह उपरान्त पुनः आने को कहते हैं। जातक के कोई विशेष प्रश्न पूछने पर उसका उत्तर उसके भृगु-पत्र में से दिया जाता है। किन्तु भृगु की भविष्यवाणियां साधारण फल कथन पर आधारित होती हैं जिसमें ग्रहों के गोचर के आधार पर कुछ विशेष आयु खंडों जैसे 28, 36, 42, 48, 52, 60 और 72 वर्ष की आयु के पूर्ण होने पर जीवन में कुछ विशेष घटनाओं के होने की भविष्यवाणी दी जाती है। यह फल-कथन बड़े ग्रहों शनि, गुरु और राहु के गोचर में  जन्मकालीन ग्रहों के ऊपर या उनसे किसी विशेष स्थान पर आने  पर आधारित होता है। पाराशरी और जैमिनी पद्धति की भांति भृगु पद्ध‌त‌ि में दशाओं और वर्ग कुंडलियों का प्रयोग नहीं होता है इस कारण से तात्काल‌िक व‌िषयों पर सटीक फल-कथन की चाह रखने वालों को निराशा हो सकती है। लेक‌िन लंबे समय के ल‌िए भव‌िष्य कथन के मामले में यह पद्ध‌त‌ि काफी सटीक होती है।


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